Olympic ( ओलंपिक खेल का इतिहास )

 ओलंपिक खेल का इतिहास :- प्रो रमेश सर द्वारा



प्राचीन काल में यह ग्रीस यानी यूनान की राजधानी एथेंस में 1896 में आयोजित किया गया था। ओलंपिया पर्वत पर खेले जाने के कारण इसका नाम ओलम्पिक पड़ा। ओलम्पिक में राज्यों और शहरों के खिलाड़ी भाग लेते थे। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ओलम्पिक खेलों के दौरान शहरों और राज्यों के बीच लड़ाई तक स्थगित कर दिए जाते थे। इस खेलों में लड़ाई और घुड़सवारी काफी लोकप्रिय खेल थे। लेकिन उसके बाद भी सालों तक ओलम्पिक आंदोलन का स्वरूप नहीं ले पाया. तमाम सुविधाओं की कमी, आयोजन की मेजबानी की समस्या और खिलाड़ियों की कम भागीदारी-इन सभी समस्याओं के बावजूद धीरे-धीरे ओलम्पिक अपने मक़सद में क़ामयाब होता गया. प्राचीन ओलम्पिक की शुरुआत 776 बीसी में हुई मानी जाती है।

प्राचीन ओलम्पिक में बाक्सिंग, कुश्ती, घुड़सवारी के खेल खेले जाते थे। खेल के विजेता को कविता और मूर्तियों के जरिए प्रशंसित किया जाता था। हर चार साल पर होने वाले ओलम्पिक खेल के वर्ष को ओलंपियाड के नाम से भी जाना जाता था। ओलम्पिक खेल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली बहु-खेल प्रतियोगिता है। इन खेलोमे भारत गोल्ड मेड्ल प्राप्त कर चूका है। एक अन्य दंतकथा के अनुसार हरक्यूलिस ने ज्यूस के सम्मान में ओलम्पिक स्टेडियम बनवाया गया । छठवीं और पांचवीं शताब्दी में ओलम्पिक खेलों की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई थी। लेकिन बाद में रोमन साम्राज्य की बढ़ती शक्ति से ग्रीस खासा प्रभावित हुआ और धीरे-धीरे ओलम्पिक खेलों का महत्व गिरने लगा।


ओलम्पिक खेलों का इतिहास 

प्राचीन ओलम्पिक खेलों का इतिहास करीब 1200 साल पुराना है। इन खेलों की शुरुआत 776 ई.पू. में मानी जाती है। उस दौरान इन खेलों का आयोजन योद्धाओं और खिलाड़ियों के बीच हुआ करता था। यूनान में प्राचीन काल में दौरन दौड़मुक्केबाजीकुश्ती और रथों की दौड़ सैनिक प्रशिक्षण का हिस्सा हुआ करते थे, जो खिलाड़ी (सैनिक) इनमें 

उम्दा प्रदर्शन करते थे उन्हें बाद में इन खेलों (ओलंपिक खेल) में अपने करतब दिखाने का मौका मिलता था। 

इन खेलों का नाम ओलम्पिक कैसे पड़ा 

इन खेलों का आयोजन साल 1896 में ग्रीस यानी यूनान की राजधानी एथेंस में किया गया था। उस दौरान इन खेलों को ओलंपिया पर्वत पर खेला गया था, इसलिए इन्हें ओलम्पिक खेल कहा जाने लगा। इन खेलों की लोकप्रियता इतनी थी कि ओलम्पिक खेलों के दौरान लड़ाई और युद्ध तक को रोक दिया जाता था। ओलम्पिक में राज्यों और शहरों के खिलाड़ी भाग लेते थे। उस दौरान ओलम्पिक खेलों में घुड़सवारी और युद्द सबसे लोकप्रिय खेल थे। हालांकि इन सबके बावजूद कई सालो तक ओलम्पिक खेलों का व्यापक विस्तार नहीं हो सका। इसका कारण मेजबानी की समस्या, सुविधाओं की कमीखिलाड़ियों की कम भागीदारी थी। 

ओलंपिक खेल से जुड़ी दंतकथा

ओलंपिक खेल से जुड़ी दंतकथा के अनुसार हरक्यूलिस ने ज्यूस के सम्मान में ओलम्पिक स्टेडियम बनवाया गया। बाद में पांचवीं छठवीं शताब्दी में ओलम्पिक खेलों की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई थी। लेकिन रोमन साम्राज्य की बढ़ती शक्ति से ग्रीस काफी प्रभावित हुआ और इसके बाद ओलम्पिक खेल का महत्व घटता चला गया।



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ओलंपिकखेल के जरिए दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने का प्रतिनिधित्व करता है।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस का इतिहास

1947 में चेकोस्लोवाकिया में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) के सदस्य डॉ जोसेफ ग्रस ने स्टॉकहोम में विश्व ओलंपिक दिवस के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।

साल 1948 में स्वीडन के स्टॉकहोम में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के 41वें सत्र में आईओसी के सदस्य डॉक्टर ग्रस ने विश्व ओलंपिक दिवस मनाने की बात कही थी।

इसके लिए 23 जून को चुना गया। इसका कारण यह था कि 23 जून 1894 को पेरिस के सोरबोन में आईओसी की स्थापना की गई थी।

वहीं, पियरे डी कौबर्टिन ने ओलंपिक खेलों को पुनर्जीवित करने के लिए इसी दिन एक रैली का आयोजन किया था। इसलिए 23 जून को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस के रूप में चुना गया।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस 2022 की थीम

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस, हर साल एक विशेष थीम या विषय के साथ मानाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस के लिए साल 2022 की थी है, ‘एक शांतिपूर्ण दुनिया के लिए साथ। इस बार ओलंपिक दिवस का आयोजन का जोर विश्व शांति पर रहा। विश्व ओलंपिक दिवस 2022 आयोजन का जोर इस पर रहा कि खेल के जरिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण करना है और लोगों को शांति से एक साथ लाना है।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस का महत्व

दुनिया भर में लिंगआयु या एथलेटिक क्षमता के भदभाव के बिना खेलों में भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए हर साल अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस का आयोजन किया जाता है।

ओलंपिक डे रन को 1987 में शुरू किया गया थाताकि अधिक राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों (एनओसी) को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके और सभी की उम्रलिंगराष्ट्रीयता और एथलेटिक क्षमता के बावजूद खेलों में भागीदारी के विचार को बढ़ावा दिया जा सके।

पहली बार ओलंपिक डे रन 10 किमी की दूरी के लिए आयोजित की गई थीजिसमें 45 एनओसी प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस केवल खेलों को बढ़ावा देने का उत्सव नहीं है। राष्ट्रीय ओलंपिक समितियां (एनओसी) दुनिया भर में खेलों के अलावा शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करती है। इन आयोजनों में सभी तबके के लोगों को भागीदार बनाने की कोशिश की जाती है।


  • कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा।
  • 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम सातवें स्थान पर रही। यह ओलंपिक खेलों में उसका सबसे खराब प्रदर्शन रहा। 1924 के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब भारत ओलंपिक में पदक जीतने में असफल रहा।
  • 1980 के मास्को ओलंपिक में हॉकी टीम फिर ओलंपिक चैंपियन बनी और खोया हुआ गौरव फिर से हासिल किया। हालांकि अभी तक हॉकी में ये भारत का अंतिम ओलंपिक पदक बना हुआ है।
  •  1980 के दशक में भारत ओलंपिक में बुरे दौर से गुजर रहा था। 1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक और 1988 के सियोल ओलंपिक में भारत एक भी पदक नहीं जीत सका।
  •  यह सिलसिला 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भी जारी रहा।
  • 1996 में अटलांटा में लिएंडर पेस ने कांस्य पदक जीता।
  • फिर चार साल बाद 2000 में वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने इतिहास रचते हुए कांस्य पदक जीता। इसी के साथ ओलंपिक में पदक जीतने वाली मल्लेश्वरी पहली भारतीय महिला बन गईं।
  • 2004 में एथेंस ओलंपिक में पुरुषों के ट्रैप में आर्मी मैन राज्यवर्धन सिंह राठौर का रजत पदक भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक बन गया। ये पदक उन्होंने निशानेबाजी में हासिल किया था।
  • 2008 का बीजिंग ओलंपिक, भारतीय ओलंपिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण पल था। इस साल निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता।
  • बॉक्सर विजेंदर सिंह और पहलवान सुशील कुमार ने भी कांस्य पदक जीते। 1952 के बाद यह पहला मौका था जब भारत ने एक ही ओलंपिक में कई पदक जीते।
  • 2012 के लंदन ओलंपिक में साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में भारत का पहला ओलंपिक पदक जीता। इसी साल सुशील कुमार, गगन नारंगविजय कुमारमैरी कॉम और योगेश्वर दत्त ने भी पदक जीते। इस साल ओलंपिक में भारत ने कुल 6 पदक जीते। ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में यह पहला मौका था जब भारत ने सबसे अधिक पदक जीते थे। 
  • 2016 में रियो ओलंपिक में पीवी सिंधु और साक्षी मलिक ही भारत के लिए पदक जीत सकीं। इस साल भारत की तरफ से सिर्फ इन दो महिलाओं ने ही पदक जीते थे।
  • 2020 में टोक्यो ओलंपिक भारत का सबसे सफल ओलंपिक रहा है। इसमें भारत ने कुल 7 पदक जीते। वहीं, भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने भी इस बार कांस्य पदक हासिल कर पिछले 41 साल से ओलंपिक पदक का इंतजार खत्म। महिला टीम ने भी इसबार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चौथा स्थान हासिल किया। इस साल नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में भारत का पहला ट्रैक-एंड-फील्ड स्वर्ण पदक जीता था।  

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