Chandrayan -3 ( चंद्रयान-3 )

 चंद्रयान-3 चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है, जो चंद्र सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और रोविंग की एंड-टू-एंड क्षमता प्रदर्शित करता है। इसमें लैंडर और रोवर विन्यास शामिल हैं। इसे एलवीएम3 द्वारा एसडीएससी शार, श्रीहरिकोटा से प्रमोचित किया जाएगा। प्रणोदन मॉड्यूल 100 किमी चंद्र कक्षा तक लैंडर और रोवर विन्यास को ले जाएगा।

चंद्रयान-3 चाँद पर खोजबीन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा भेजा गया तीसरा भारतीय चंद्र मिशन है। इसमें चंद्रयान-2 के समान एक लैंडर और एक रोवर है, लेकिन इसमें ऑर्बिटर नहीं है।

चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 का एकीकृत मॉड्यूल, कैप्सूल में भरे जाने से ठीक पहले
चंद्रयान-3 का एकीकृत मॉड्यूल, कैप्सूल में भरे जाने से ठीक पहले
मिशन प्रकारचंद्र लैंडर तथा रोवर
संचालक (ऑपरेटर)भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)
वेबसाइटचंद्रयान 3
मिशन अवधिविक्रम लैंडर: <14 दिन
प्रज्ञान रोवर: <14 दिन
अंतरिक्ष यान के गुण
बसचंद्रयान
निर्माताभारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)
पेलोड वजनप्रोपल्शन मॉड्यूल: 2148 किग्रा
लैंडर मॉड्यूल (विक्रम): 26 किग्रा के (प्रज्ञान) रोवर सहित 1752 किग्रा
कुल: 3900 किग्रा
ऊर्जाप्रोपल्शन मॉड्यूल: 758 W
लैंडर मॉड्यूल: 738 W
रोवर: 50 W
मिशन का आरंभ
प्रक्षेपण तिथि14 जुलाई 2023 14:35 भामास, (9:05 UTC)
रॉकेटएलवीएम3-एम4
प्रक्षेपण स्थलसतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र
ठेकेदारभारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
चंद्रमा ऑर्बिटर
अंतरिक्ष यान कम्पोनेंटलैंडर
कक्षीय निवेशन5 अगस्त 2023
अंतरिक्ष यान कम्पोनेंटलैंडर
कक्षीय निवेशन5 अगस्त 2023
चंद्रमा लैंडर
अंतरिक्ष यान कम्पोनेंटरोवर
लैंडिंग तारीख23 अगस्त 2023 18:04 आईएसटी[2]
लैंडिंग साइट69°22′03″S 32°20′53″E / 69.367621°S 32.348126°E (मैनज़ीनस और सिमपेलिनस क्रैटर्स के बीच)[3]



भारतीय चंद्रयान अभियान (इसरो)
← चंद्रयान-2चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन (LUPEX) →

यह मिशन चंद्रयान-2 की अगली कड़ी है, क्योंकि पिछला मिशन सफलता पूर्वक चाँद की कक्षा में प्रवेश करने के बाद अंतिम समय में मार्गदर्शन सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के कारण सॉफ्ट लैंडिंग में विफल हो गया था, सॉफ्ट लैंडिंग का पुनः सफल प्रयास करने हेतु इस नए चंद्र मिशन को प्रस्तावित किया गया था।

चंद्रयान-3 का लॉन्च सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (शार)श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई, 2023 शुक्रवार को भारतीय समय अनुसार दोपहर 2:35 बजे हुआ था।यह यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास की सतह पर 23 अगस्त 2023 को भारतीय समय अनुसार सायं 06:04 बजे के आसपास सफलतापूर्वक उतर चुका है। इसी के साथ भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान उतारने वाला पहला और चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा देश बन गया।


चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रमा पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग कराने की तैयारी में है।


भारत का लक्ष्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन की कतार में शामिल होकर यह उपलब्धि हासिल करने वाला विश्व का चौथा देश बनना है। 

चंद्रयान-3 मिशन:  

परिचय:  

चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्र मिशन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का दूसरा प्रयास है।

इस मिशन के तहत चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई, 2023 को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से उड़ान भरी थी।

इसमें एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (LM), प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) और एक रोवर शामिल है जिसका उद्देश्य अंतर ग्रहीय मिशनों के लिये आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को विकसित एवं प्रदर्शित करना है। 

चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य:  

चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सुगम लैंडिंग करना।

रोवर को चंद्रमा पर घूमते हुए प्रदर्शित करना। 

यथास्थान वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना।

विशेषताएँ:  

चंद्रयान-3 के लैंडर (विक्रम) और रोवर पेलोड (प्रज्ञान) चंद्रयान-2 मिशन के समान ही हैं।

लैंडर पर वैज्ञानिक पेलोड का उद्देश्य चंद्रमा के पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है। इन पेलोड में चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन, सतह के तापीय गुण, सतह के पास प्लाज़्मा में बदलाव और पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच की दूरी को सटीक रूप से मापना शामिल है। 

चंद्रयान-3 के प्रणोदन मॉड्यूल में एक नया प्रयोग किया गया है जिसे स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) कहा जाता है।

SHAPE का लक्ष्य परावर्तित प्रकाश का विश्लेषण कर संभावित रहने योग्य छोटे ग्रहों की खोज करना है।


चंद्रयान-3 में बदलाव और सुधार:  

इसके लैंडिंग क्षेत्र का विस्तार किया गया है जो एक बड़े निर्दिष्ट क्षेत्र के भीतर सुरक्षित रूप से उतरने की सुविधा देता है।

लैंडर को अधिक ईंधन से लैस किया गया है ताकि आवश्यकतानुसार लैंडिंग स्थल अथवा वैकल्पिक स्थानों तक लंबी दूरी तय की जा सके।

चंद्रयान-2 में केवल दो सौर पैनल की तुलना में चंद्रयान-3 लैंडर में चार तरफ सौर पैनल लगाए गए हैं।

चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से प्राप्त उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों का उपयोग लैंडिंग स्थान निर्धारित करने के लिये किया जाता है और साथ ही स्थिरता तथा मज़बूती बढ़ाने के लिये इसमें कुछ संशोधन किया गया है।

लैंडर की गति की निरंतर निगरानी करने और आवश्यक सुधार के लिये चंद्रयान-3 में अतिरिक्त नेविगेशनल एवं मार्गदर्शन उपकरण मौजूद हैं।

इसमें लेज़र डॉपलर वेलोसीमीटर नामक एक उपकरण शामिल है जो लैंडर की गति का माप करने के लिये चंद्रमा की सतह पर लेज़र बीम उत्सर्जित/छोड़ेगा करेगा।

प्रक्षेपण और समयरेखा:  

चंद्रयान-3 को लॉन्च करने के लिये LVM3 M4 लॉन्चर का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है

LVM3 के उड़ान भरने के लगभग 16 मिनट बाद अंतरिक्ष यान रॉकेट से अलग हो गया। यह एक अंडाकार पार्किंग कक्षा (EPO) में प्रवेश कर गया।

चंद्रयान-3 की यात्रा में लगभग 42 दिन लगने का अनुमान है, 23 अगस्त, 2023 को इसकी चंद्रमा पर लैंडिंग निर्धारित है।

लैंडर और रोवर का मिशन लाइफ, एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन) का होगा क्योंकि वे सौर ऊर्जा पर कार्य करते हैं।

चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के समीप है।


दक्षिणी ध्रुव के समीप चंद्रमा की लैंडिंग का महत्त्व:

ऐतिहासिक रूप से चंद्रमा के लिये अंतरिक्ष यान मिशनों ने मुख्य रूप से भूमध्यरेखीय क्षेत्र को उसके अनुकूल भूखंड और परिचालन स्थितियों के कारण लक्षित किया है।

हालाँकि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव भूमध्यरेखीय क्षेत्र की तुलना में काफी अलग और अधिक चुनौतीपूर्ण भू-भाग है।

कुछ ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य का प्रकाश दुर्लभ है जिसके परिणामस्वरूप उन क्षेत्रों में हमेशा अंधेरा रहता है जहाँ तापमान -230 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है। 

सूर्य के प्रकाश की कमी के साथ अत्यधिक ठंड उपकरणों के संचालन एवं स्थिरता के लिये कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है।

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अत्यधिक विपरीत स्थितियाँ प्रदान करता है जो मनुष्यों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है लेकिन यह उन्हें प्रारंभिक सौरमंडल के बारे में बहुमूल्य जानकारी का संभावित भंडार बनाता है।

इस क्षेत्र का पता लगाना महत्त्वपूर्ण है जो भविष्य में गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण को प्रभावित कर सकता है।

भारत के अन्य चंद्रयान मिशन:   

चंद्रयान-1:  

भारत का चंद्र अन्वेषण मिशन 2008 में चंद्रयान-1 के साथ शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य चंद्रमा का त्रि-आयामी एटलस निर्मित करना और खनिज मानचित्रण करना था।

प्रक्षेपण यान: PSLV-C11.  

चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी और हाइड्रॉक्सिल का पता लगाने सहित महत्त्वपूर्ण खोजें कीं।

चंद्रयान-2: आंशिक सफलता और खोज:

चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे, जिसका लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की खोज करना था।

प्रक्षेपण यान: GSLV MkIII-M1 

यद्यपि लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गए, ऑर्बिटर ने सफलतापूर्वक डेटा एकत्र किया और सभी अक्षांशों पर पानी के प्रमाण पाए।

चंद्रमा मिशन के प्रकार: 

फ्लाईबीज़: इन मिशनों में चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किये बिना अंतरिक्ष यान का चंद्रमा के पास से गुज़रना शामिल है, जिससे दूर से अवलोकन की अनुमति मिलती है।

उदाहरणतः संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पायनियर 3 और 4 तथा सोवियत रूस द्वारा लूना (Luna) 3 शामिल हैं।

ऑर्बिटर: ये अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह और वायुमंडल का लंबे समय तक अध्ययन करने के लिये चंद्र कक्षा में प्रवेश करते हैं।

चंद्रयान-1 और 46 अन्य मिशन में ऑर्बिटर का उपयोग किया गया है।

प्रभाव मिशन: ऑर्बिटर मिशन का विस्तार, प्रभाव मिशन में उपकरण को चंद्रमा की सतह पर अनियंत्रित लैंडिंग करवाना, नष्ट होने से पहले मूल्यवान डेटा प्रदान करवाना शामिल था।

चंद्रयान-1 के चंद्रमा प्रभाव जाँच (MIP) ने इस दृष्टिकोण का पालन किया।

लैंडर्स: इन मिशनों का लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है, जिससे करीब से अवलोकन किया जा सके।

सोवियत रूस द्वारा वर्ष 1966 में Luna 9 चंद्रमा पर पहली सफल लैंडिंग थी।

रोवर्स: रोवर्स, विशेष पेलोड हैं जो लैंडर्स से अलग हो जाते हैं और चंद्रमा की सतह पर स्वतंत्र रूप से गति करते हैं।

ये बहुमूल्य डेटा एकत्रित करते हैं और स्थिर लैंडर्स की सीमाओं को पार कर जाते हैं। चंद्रयान-2 के रोवर को प्रज्ञान नाम दिया गया था (चंद्रयान-3 के लिये भी यही नाम रखा गया है)।

मानव मिशन: इन मिशनों में चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों की लैंडिंग शामिल है।

वर्ष 1969 से 1972 के दौरान छह सफल लैंडिंग के साथ केवल NASA ने ही यह उपलब्धि हासिल की है।

वर्ष 2025 के लिये नियोजित नासा का आर्टेमिस III, चंद्रमा पर मानव की वापसी को चिह्नित करेगा।

 



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