Constitution part and Article

भाग 1 - संघ और राज्य क्षेत्र - अनुच्छेद 1-4

संविधान (Constitution)

भारतीय संविधान में 22 भाग और 395 अनुच्छेद है | संविधान में सभी को बराबर का अधिकार दिया गया है | 


भाग - 1  संघ और राज्य क्षेत्र ( 1 - 4 )

अनुच्छेद 1  - भारत राज्यों का संघ है अथार्त इसे अलग नहीं किया जा सकता है | 


अनुच्छेद 2  - संसद राष्ट्रपति को पूर्व सुचना देकर किसी भी विदेशी राज्यों  को अपने सीमा में मिला सकता है | 


अनुच्छेद 3  - संसद राष्ट्रपति को पूर्व सुचना देकर किसी वर्तमान में किसी भी राज्य   के नाम तथा सीमा बदल सकता है | 

 उदहारण :- उड़ीशा का नाम बदल कर ओडिशा कर दिया गया | 

                  बिहार से झारखण्ड को अलग कर दिया गया | 


अनुच्छेद 4  - अनुच्छेद 2 और 3  में किया गया संसोधन 368 से बहार रखा गया है | इस संसोधन को राष्ट्रपति नहीं रोक सकते हैं |  


भाग 2 - नागरिकता - अनुच्छेद 5-11

भाग - 2 नागरिकता  ( 5 - 11 ) 

जब कोई देश अपने मूल निवासियो को कुछ खास अधिकार देता है इस अधिकार को ही नागरिकता कहा जाता है | भारत में नागरिकता ब्रिटेन से  लिया गया है | 

भारत में एकहरी नागरिकता है अतः हम केवल भारत के नागरिक है किसी राज्य के नहीं | 

भारत के नागरिकता 1950 के अधिनियम पर आधारित है नागरिकता में पहली बार संशोधन 1986  में हुआ | 


अनुच्छेद 5  -  प्रारम्भ में दी गयी नागरिकता अर्थात् जब संविधान बना तो  सभी लोगो को नागरिकता दी गयी जो उस समय भारत में थे | 


अनुच्छेद 6 - पाकिस्तान से भारत आए लोगो को को नागरिकता दी गयी किन्तु अगर वह संविधान बनने के बाद भारत आएंगे तो उन्हें नागरिकता नहीं दी जाएगी | 


अनुच्छेद 7 -  सवतंत्र के बाद भारत से पाकिस्तान चले गए ऐसे व्यक्ति जो संविधान बनाने से पहले भारत वापस आगये तो उन्हें नागरिकता दी जाएगी | 


अनुच्छेद 8  - विदेश भ्रमण एवं नौकरी करने गए लोगो की नागरिकता  होगी |  


अनुच्छेद 9  - अगर किसी व्यक्ति ने किसी दूसरे देश की नागरिकता ले ली तो भारत की नागरिकता समाप्त कर दी जाएगी | 


अनुच्छेद -10  - किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता तब तक बनी रहेगी जब तक वह किसी देश विरोधी कार्य न कर दे | 


अनुच्छेद 11  - नागरिकता कानून संसद बनाती है और इसकी जिम्मेदारी गृह मंत्रालय को दी गयी है | 


भारतीय नागरिकता अधिनियम , 1955 ई. के अनुसार निम्न में से किसी एक आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है- 

  1. जन्म से: प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म संविधान लागु होने से 26 जनवरी 1950 ई. भारत में हुआ है वह  भारत के नागरिक है|
  2. वंश परम्परा द्वारा नागरिकता : 26 जनवरी 1950 को या उसके पश्चात भारत से बाहर जन्म लेने वाले भारत का नागरिक तब मन जायेगा जब उसके जन्म के समय उसके माता या पिता में से कोई भी भारत का नागरिक हो| 
  3. पंजीकरण द्वारा नागरिकता :
         a . वैसे व्यक्ति जो पंजीकरण पत्र देने से छह माह पूर्व से भारत में रह रहा है उसे भारत की नागरिकता मिल जाएगी 
         b . वे स्त्रियां जो भारतीयों से विवाह कर चुकी है या करेंगी | 
       c . वैसे व्यक्ति जो भारत में रहता हो या भारत सरकार के लिए नौकरी करता हो वह पंजीकरण पत्र देकर भारत की नागरिकता ले सकता हैं| 
  4. देशीकरण : वैसे व्यक्ति जो भारत के किसी भी एक भाषा को जनता हो , भारत के लिए उसकी सोच सकारात्मक हो तथा कला या वैज्ञानिक में निपुण हो और साथ ही काम से काम 10 साल तक भारत में रहा हो वैसे व्यक्ति को भारत की नागरिकता मिल जाएगी | 
  5. भूमि विस्तार द्वारा : किसी भी विदेशी राज्यों को भारत में मिला लेने पर वहां  के लोगो को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी 
  6. ओवरसीज नागरिकता (overseas नागरिकता ) : यह नागरिकता बड़े बड़े उधोगपतियों को दिया जाता है जो विदेशी नागरिकता ग्रहण कर लिए हैं , इस नागरिकता को प्राप्त करने वाला व्यक्ति बिना वीजा (visa )के भारत आ सकता  है |
माता के नागरिकता के आधार पर विदेश में जन्मे बच्चे को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा किया गया |

भाग 3 - मौलिक अधिकार - अनुच्छेद 12-35

 भाग - 3 मूल अधिकार/मौलिक अधिकार ( 12 - 35 )

मौलिक सधिकार को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है | 

मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे , लेकिन 44 वाँ संविधान संशोधन के द्वारा संपत्ति के अधिकार [अनुच्छेद -31 और 19 (vi)  ] को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे अनुच्छेद - 300 क में रखा गया है 

मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है और राष्ट्रीय आपात के दौरान अनुच्छेद 352 और व्यक्तिगत सवतंत्रता को छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है | 


अनुच्छेद 12- मूल अधिकार की परिभाषा| 


अनुच्छेद 13- यदि हमारे मूल अधिकार किसी दूसरे के मूल अधिकार को प्रभावित करे तो हमारे मूल अधिकार पर रोक लगाया जा सकता है| 


समता का अधिकार / समानता का अधिकार ( 14 - 18 )


अनुच्छेद 14- विधि के समक्ष समानता का अधिकार अर्थात् कानून के सामान सब बराबर हैं , यह ब्रिटेन से लिया गया है| 


अनुच्छेद 15 - जाती , लिंग , धर्म , जन्म स्थान के आधार पर सार्वजनिक स्थान पर भेद भाव नहीं किया  जायेगा| 


अनुच्छेद 16- लोक नियोजन  - इसमें पिछड़े वर्गों के लिए कुछ समय आरक्षण की चर्चा है| 


अनुच्छेद 17- अस्पृश्यता का अंत  - इसमें किसी के साथ छुआ छूट नहीं किया जा सकता यानि छुआ छूट का अंत| 


अनुच्छेद 18- उपाधियों का अंत [ किन्तु शिक्षा सुरक्षा तथा भारत रत्न , पद्मा विभूषण इत्यादि रख सकते हैं | ] विदेशी उपाधि रखने से पहले राष्ट्रपति से अनुमति लेनी होगी| 


स्वतंत्रता का अधिकार ( 19 - 22 )  


अनुच्छेद 19 - मूल संविधान में सात तरह के स्वंतत्रता का उल्लेख था ,वर्त्तमान में यह सिर्फ छह है | 

अनुच्छेद 19 i  - बोलने की सवतंत्रता |  
अनुच्छेद 19 ii - बिना हथियारों के एकत्रित होने की तथा सभा करने की स्वतंत्रता |  
अनुच्छेद 19 iii -संगठन बनाने की सवतंत्रता | 
अनुच्छेद 19 iv- देश के किसी भी क्षेत्र में बिना रोक टोक के चारो तरफ घूमने की सवतंत्रता | 
अनुच्छेद 19 v - भी क्षेत्र में बसने तथा निवास करने की सवतंत्रता | 
अनुच्छेद 19 vii-कोई भी व्यवसाय करने की  सवतंत्रता |  
अनुच्छेद 19 vi संपत्ति का अधिकार को 44 वाँ संविधान संशोधन 1978 के द्वारा हटा दिया गया | 

अनुच्छेद  20 - दोष - सिद्धि में संरक्षण - 
  1. किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिय एक ही सजा दी जाएगी 
  2. अपराधी पर अपराध करने के समय का कानून लागु होगा 
  3. किसी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाही मान्य नहीं होगी 
अनुच्छेद  21 - प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता : किसी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तित्व स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता | 

अनुच्छेद 21 क - राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के बच्चो को निशुल्क शिक्षा प्रदान करेगी | इसे 86 वां संविधान संशोसन 2002 द्वारा जोड़ा गया | 

अनुच्छेद 22 - गिरफ़्तारी में संरक्षण -
  1. किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले उसे कारन बताना होगा 
  2. गिरफ्तार करने के 24 घंटे के अंदर उसे दंडाधिकारी के सामने पेश करना होगा 
  3. उसे अपने पसंद के वकील रखने का अधिकार देना होगा | 

शोषण के विरुद्ध अधिकार ( 23 - 24 ) 

अनुच्छेद 23 - बलात श्रम तथा दुर्व्यापार पैर प्रतिबंध : किसी भी व्यक्ति से बेगारी तथा या जबरदस्ती काम नहीं कराया जा सकता | 

अनुच्छेद 24 - 14 वर्षो से काम उम्र के बच्चो से किसी कारखाने खानों तथा किसी जोखिम वाला काम पैर नहीं लगाया जा सकता  | 

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार  (25 - 28 )

अनुच्छेद 25 - कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मन सकता है तथा उसका प्रचार कर सकता है 

अनुच्छेद 26 - इसमें कोई भी अपने धर्म के लिया संस्थानों की अस्थापना कर सकता तथा इसके अंतर्गत याग हवन तथा सड़क पैर नमाज़ पढ़ने की अनुमति है | 

अनुच्छेद 27 - राज्य किसी धार्मिक कार्य के लिए जमा धन में से टैक्स नहीं ले सकता | 

अनुच्छेद 28 - सरकारी पैसों से चल रहे कोई भी संस्थान में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी | 

संस्कृति एवं शिक्षा संबंधित अधिकार ( 29 - 30 )

अनुच्छेद 29 - अल्पसंख्यक अपनी भाषा , संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है तथा उसे भाषा , जाती , धर्म के आधार पर किसी संस्था में जाने से नहीं रोका जा सकता | 

अनुच्छेद 30 - अल्पसंख्यक अपनी पसंद की संस्था खोल सकते है सरकार  उसे भी चलाने के लिए धन देगी | 

अनुच्छेद 31 - पैतृक संपत्ति की चर्चा जो मूल अधिकार या 44 वां संविधान संशोधन 1978 द्वारा इसे हटा कर 300 (क) में जोर दिया गया| 

अनुच्छेद 32 - इसमें संवैधानिक उपचार का अधिकार है : इसे मूल अधिकार को  मूल अधिकार बनाने वाला अधिकार कहा जाता है , अंबेडकर ने इसे संविधान का आत्मा कहा था | -
बंदी प्रत्यक्षीकरण - यह बंदी बनाने वाले अधिकारी को आदेश देता है की उसे समय के अंदर न्यायलय में पेश कर दे | 
परमादेश - यह उस समय जारी किया जाता है जब कोई पदाधिकारी अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है तब उसे यह बताने के लिए जारी किया जाता है की  वह अपना कर्तव्य  का पालन करे |  
प्रतिषेध - यह ऊपरी न्यायलय अपने से निचली न्यायालय पर लगाती है और आदेश देती है की यह मामला अपने यहाँ कार्यवाही न करे क्युकी यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है|
उत्प्रेषण - यह ऊपरी न्यायालय अपनी निचली न्यायालय को यह निर्देश देती है कि वे अपने पास लंबित मुकदमों के न्याय - निर्णयन के लिए उसे अपने वरिष्ठ न्यायालय को भेजे |  
अधिकार - पृच्छा - जब कोई ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगे जिसके लिए वह अधिकृत न हो तब उस रोकने के अधिकार पृच्छा अता है | 

भीम राव अम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान की आत्मा कहा था जो मूल अधिकार को मूल अधिकार बनाता है | 

अनुच्छेद 33 - देश की सुरक्षा के लिए संसद सेना मीडिया तथा गुप्तचर के मूल अधिकार को सीमित  कर सकता है | 


अनुच्छेद 34 - भारत में कहीं भी सेना का कानून लागु हो सकता है | तथा उसके न्यायालय को कोर्ट मार्शल कहते है| 


अनुच्छेद 35 - मूल अधिकार के लागु होने की चर्चा | मूल अधिकार को 7 भागो में बांटा गया है लेकिन वर्तमान में यह केवल 6 है| 


भारतीयों तथा विदेशियों के लिए - 14 , 20 , 21 , 21 क , 23 , 24 , 25 - 28 

केवल भारतीयों के लिए - 15 ,16 ,19 ,29 , 30 


संविधान का भाग 4 राज्य के नीति निदेशक तत्व (directive principles of state policy) से संबंधित है । इसके अंतर्गत अनुच्छेद 36- 51 तक आते हैं । 

  • अनुच्छेद 38- लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय द्वारा सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करना और आय, प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता को समाप्त करना ।
  • अनुच्छेद 39 -सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार सुरक्षित करना, सामूहित हित के लिए समुदाय के भौतिक संसाधनों का सम वितरण सुरक्षित करना, धन और उत्पादन के साधनों का संकेन्द्रण रोकना, पुरूषों और स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन सुरक्षित करना, कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों को अवस्था के दुरुपयोग से संरक्षण, बालकों को स्वास्थ्य विकास के अवसर, समान न्याय एवं गरीबों को निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराना ।
  • अनुच्छेद 40- ग्राम पंचायतों का गठन और उन्हें आवश्यक शक्तियां प्रदान कर स्थानीय स्व-शासन  सरकार की इकाई के रूप में कार्य करने की शक्ति प्रदान करना।
  • अनुच्छेद 41 -काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी, और निःशक्ततता की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को संरक्षित करना ।
  • अनुच्छेद 42 – काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध करना ।
  • अनुच्छेद 43 – सभी कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर, तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर; ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों व्यक्तिगत या सहकारी के आधार पर कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन; उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों के भाग लेने के लिए कदम उठाना (अनुच्छेद 43- क); सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त संचालन, लोकतांत्रिक निमंत्रण तथा व्यावसायिक प्रबंधन को बढ़ावा देना ( अनुच्छेद 43 ब) ।
  • अनुच्छेद 44 – भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता ।
  • अनुच्छेद 45 – सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना’ ।
  • अनुच्छेद 46- अनुसूचित जाति एवं जनजाति और समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षणिक एवं आर्थिक हितों को प्रोत्साहन और सामाजिक अन्याय एवं शोषण से सुरक्षा
  • अनुच्छेद 47- पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करना तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करना; स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक नशीली दवाओं, मदिरा, ड्रग के औषधीय प्रयोजनों से भिन्न उपभोग पर प्रतिबंध ।
  • अनुच्छेद 48- गाय, बछड़ा व अन्य दुधारू पशुओं की बलि पर रोक और उनकी नस्लों में सुधार को प्रोत्साहन, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से करना, पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा ।
  • अनुच्छेद 49- राष्ट्रीय महत्व वाले घोषित किए गए कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले संस्मारक या स्थान या वस्तु का संरक्षण करना ।
  • अनुच्छेद 50 -राज्य की लोक सेवाओं में, न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना ।
  • अनुच्छेद 51- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि करना तथा राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखना, अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाना और अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थ द्वारा निपटाने के लिए प्रोत्साहन देना ।


भाग 4(क) - मूल कर्तव्य - अनुच्छेद 51क

 मूल कर्तव्य (51 क) 

इसे 42 वां संविधान संशोधन 1976 में सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर मूल कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया | इसे रूस के संविधान से लिया गया है | 

  1. संविधान का पालन करना एवं इसके आदर्श , संस्था , राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र गान का सम्मान करना प्रत्येक नागरिकों का कर्तव्य होगा | 
  2. राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाला आदर्शो का पालन करना | 
  3. देश की सम्प्रभुता , एकता अखंडता को बनाए रखें तथा उसकी रक्षा करना | 
  4. देश की रक्षा करना तथा राष्ट्र की  सेवा करना| 
  5. भारत के लोगो में मेल मिलाप तथा भाईचारा बनाए रखना | 
  6. देश की संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझना तथा उसकी रक्षा करना | 
  7. पर्यावरण और वन्य  रक्षा करना | 
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना |
  9. सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना | 
  10. व्यक्तिगत तथा सामूहिक गतिविधियां  के लिए तैयार रहना | 
  11. 6 - 14 वर्ष के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना प्रत्येक अभिभावकों का कर्तव्य होगा |  यह 86 वां संशोधन 2022 द्वारा जोड़ा गया है | 

भाग 5 - संघ - अनुच्छेद 52-151

 संघ ( 52 - 151 )


अनुच्छेद 52 - राष्ट्रपति - राष्ट्रपति देश का औपचारिक प्रमुख होता है | राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक होता है | यह राष्ट्रपति का औपचारिक प्रमुख का पद ब्रिटेन से लिया गया है| 


अनुच्छेद 53 - कार्यपालिका - कार्यपालिका का औपचारिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है | 


अनुच्छेद 54 - राष्ट्रपति का निर्वाचन - इसका निर्वाचन एकल संक्रमणीय अनुपातिक पद्धति द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से कराया जाता है| 


अनुच्छेद 55 - कोटा - इसमें जमानत जब्त होने के बाद भी प्रत्याशी जीत सकता है किन्तु कोटा से काम वोट पाने पर भी जीते हुए प्रत्याशी को भी हटा दिया जाता है | 


अनुच्छेद 56 - राष्ट्रपति का कार्यकाल - राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षो का होता है | 


अनुच्छेद 57 - दुबारा निर्वाचन - एक व्यक्ति दुबारा राष्ट्रपति के लिय निर्वाचित हो सकता है | 


अनुच्छेद 58 - योग्यता - 1. भारत का नागरिक होना चाहिए , 2. 35 वर्ष आयु होनी चाहिए , 3. लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता होनी चाहिए , 4. 50 प्रस्तावक तथा 50 अनुंडक होनी चाहिए


अनुच्छेद 59 - दशाएं / शर्तें - 1. पागल या दिवालिया न हो , 2. लाभ के पद पर न हो , 3. संसद या विधानमंडल में सदस्य न हो 


अनुच्छेद 60 - शपथ - राष्ट्रपति को शपथ सर्वोच्च न्यायलय के मुख्या नयायधीश दिलाते हैं| 


अनुच्छेद 61 - महाभियोग - यह U S A के संविधान से लिया गया है | राष्ट्रपति पर महाभियोग दोनों सदनों यानि उच्च सदन या निम्न सदन कोई भी शुरू कर सकता है जिस सदन से महाभियोग शुरू होगा उस सदन का 25% सदस्य अनुमोदित करेंगे | उसके बाद वह सदन 2 / 3 बहुमत से महाभियोग पारित करेंगे | उसके बाद वह दूसरे सदन को भेजने से 14 दिन पूर्व राष्ट्रपति को सुचना दी जाएगी | उसके बाद दूसरे सदन में भी यदि 2 / 3 बहुमत से पारित हो जायेगा तब राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया जायेगा |  


अनुच्छेद 62 - राष्ट्रपति के रिक्त पद को भरने के लिए राष्ट्रपति का निर्वाचन पदवधि की समाप्ति से पहले ही कर लिया जायेगा | 


अनुच्छेद 63 - उपराष्ट्रपति -  उपराष्ट्रपति से  सम्बंधित प्रावधान अमेरिका से लिया गया है | 


अनुच्छेद 64 - सभापति - उपराष्ट्रपति  राज्यसभा का सभापति होता है | 


अनुच्छेद 65 - राष्ट्रपति कार्यवाहक - राष्ट्रपति की उपस्थिति में उपराष्ट्रपति ही राष्ट्रपति का कार्य संभालती है | उस दौरान वह राष्ट्रपति के सभी शक्तियों का उपयोग करता है | इस  राज्यसभा के सभापति का कार्य नहीं करेगा | 


अनुच्छेद 66 - निर्वाचन - राष्ट्रपति का निर्वाचन संक्रमणीय अनुपातिक पद्धति  द्वारा होता है |   राष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदन भाग लेते है | 


अनुच्छेद 67 - कार्यकाल - उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है लेकिन उसके उत्तराधिकारी का निर्वाचन नहीं हुआ है तो वह तबा तक अपने पद पर रहेगा | जब तक उसका उत्तराधिकारी निर्वाचित नहीं हो जाता | 


अनुच्छेद 68 - चुनाव का समय - उपराष्ट्रपति के चुनाव को यथाशीघ्र करने की चर्चा अतः इसका कोई निश्चित समय नहीं दिया गया है | 


अनुच्छेद 69 - शपथ - उपराष्ट्रपति को शपथ राष्ट्रपति दिलाता है | 


अनुच्छेद 70 - वैसा किसी आस्मिकताओं की स्थिति जिसकी चर्चा संविधान में नहीं किया गया है वैसी स्थिति में संसद को जो अच्छा लगे वो कर सकता है |  


अनुच्छेद 71 - राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के विवादों को सुप्रीम कोर्ट  सुलझाया जाएगा | 


अनुच्छेद 72 - क्षमादान शक्तियां - राष्ट्रपति को विभिन्न मामलो क्षमा करने की शक्तियां और किसी मामले में दंडादेश को निलंबन करने की शक्तियां है | 


अनुच्छेद 73 - संघ की कार्यपालिका कार्यप्रणाली को आसान बनाने के लिए कानून राष्ट्रपति बनाएगा | 


अनुच्छेद 74 - राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए एक मंत्रीपरिषद होगा जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होगा | 


अनुच्छेद 75 - मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति करता है | 


अनुच्छेद 76 -  महान्यायवादी (Attorny  General ) - यह केंद्र सरकार का अधिकारी क़ानूनी सलाहकार होता है | 


अनुच्छेद 77 - केंद्र सरकार के कार्य के संचालन की चर्चा जो विभिन्न मंत्रालय द्वारा संपन्न होता है राष्ट्रपति इनके कार्यों को आसान बनाने के लिए कानून बना सकती है | 


अनुच्छेद 78 - प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य है कि संसद के कार्यवाही की जानकारी राष्ट्रपति को दी जाए | 


अनुच्छेद 79 - संसद - पार्लियामेंट शब्द फ़्रांस से लिया गया है जबकि संसद की जननी UK को कहा जाता है | 

संसद के तीन अंग होते है 1 . लोकसभा , 2.  राजयसभा , 3.  राष्ट्रपति | 


अनुच्छेद 80 - राज्यसभा - राष्ट्रपति द्वारा खंड 3 के उपबंध के अनुसार नमोनित 12 सदस्य | संघ और राज्य क्षेत्रों के 238 से अनधिक प्रतिनिधियों से मिलकर बनेगी | मंत्रीपरिषद राजयसभा के प्रति उत्तरदायी नहीं होते हैं | 


अनुच्छेद 81 - लोकसभा - इसका कार्यकाल 5 वर्षो का होता है तथा 5 वर्ष से पहले भी निघटन हो सकता है । इसे निम्न सदन कहा जाता है । इसमें बहुत के आधार पर PM बनता है । भारत का नागरिक किसी भी राज्य से लोकसभा का चुनाव लड़ सकता है ।


अनुच्छेद 82 - गणना के वाद पर सीटों की संख्या का समायोजन 10 लाख जनगणना पर एक संसद की व्यवस्था है । वर्तमान में सीटों की संस्था 1971 के जनगणना के आधार पर है ।


अनुच्छेद 83 - राज्य सभा स्थायी सदन है जब की लोक सभा की अवधि 5 वर्ष तक ही होता है । 


अनुच्छेद 84 - संसद की योग्यता - 

  1. भारत का नागरिक होना चाहिए ।
  2. पागल न हो तथा किसी भी लाभ के पद पर न हो ।
  3. लोकसभा के लिए कम से कम 25 वर्ष तथा राज्यसभा के लिए कम से कम 30 वर्ष आयु होनी चाहिए ।

अनुच्छेद 85 - इसमें सत्र आहुत तथा सत्रावसान की चर्चा की गई है ।
  1. जब राष्ट्रपति जब विधेयक बनाने के लिए लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्य को बुलाते है तो उसे सत्र का आहुत कहते हैं ।
  2. जब दोनो सदन कानून बना लेते है तो राष्ट्रपति सत्र को समाप्त करके उन्हें वापस भेज देते है तो उसे सत्रावसान कहते हैं।

अनुच्छेद 86 - राष्ट्रपति का अभिभाषण - राष्ट्रपति का अभिभाषण प्रत्येक वर्ष संसद की फली बैठक में दोनो सदनों को एक साथ संबोधित करते हैं ।

अनुच्छेद 87 - राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण - 5 वर्षो के बाद नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक को संयुक रूप से संबोधित क्या जाता है ।

अनुच्छेद 88 - मंत्री तथा महान्यायवादी - सदन में मंत्री तथा महान्यवादी विशेष प्रवधान के तहत सदन में बोल सकता है , लेकिन महान्यायवादी सदन में मतदान नहीं कर सकता है।

अनुच्छेद 89 - अनुच्छेद 89 में राज्यसभा के सभापति और उपसभापति की चर्चा है ।

अनुच्छेद 90 - उपसभापति को पद से हटाना या उपसभापति के पद से अवकाश या त्यागपत्र -
  1. यदि वह राज्यसभा का सदस्य नहीं होगा तो वह पद खाली कर सकता है।
  2. किसी भी समय सभा के अध्यक्ष को अपने हस्ताक्षर द्वारा त्यागपत्र दे सकता है ।
  3. सभा के सभी सदस्यों की सहमती से प्रस्ताव पारित करके उसे अपने पद से हटाया जा सकता है ।

नोट : खंड ( 3 ) तब तक पारित नहीं किया जा सकता है जब तक प्रस्ताव पारित करने के समय से 14 दिन पूर्व सूचना न दी गई हो ।

अनुच्छेद 91 - सभापति के कर्तव्य का पालन या सभापति के रूप में कार्य करने की उपसभापति या किसी और व्यक्ति की शक्ति-
  1. जब सभापति का पद रिक्त हो या ऐसी अवधि जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा हो तब उस समय उपसभापति या वो सभा का सदस्य जिसको राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया गया हो ,  जो उपसभापति के रूप में कार्य कर रहा हो , वह अपने कर्तव्य का पालन करेगा ।
  2. राज्यसभा की बैठक में सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति यदि उपसभापति भी अनुपस्थित हो तब वह व्यक्ति जो सभा का सदस्य हो और सभा के नियमो द्वारा अवधारित क्या जाए वह सभापति के रूप में कार्य करेगा ।

अनुच्छेद 92 - जब सभापति या उपसभापति को अपने पद से हटाने के लिए विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न हो ।
  1. यदि सभापति को अपने पद से कटने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन हो या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का विचाराधीन हो तब उसभपति की उपस्थिति में भी वह अध्यक्षता नहीं करेगा तब उस समय अनुच्छेद 91 के 2 ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में लागू होंगे |
  2. जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का संकल्प सभा के विचाराधीन हो तब सभापति को राज्यसभा में बोलने तथा कार्यवाही करने का अधिकार होगा लेकिन अनुच्छेद 100 में किसी बात के होते हुए भी किसी मामले में उसे वोट डालने का अधिकार नहीं होगा।

अनुच्छेद 93 - लोक सभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष की चर्चा - लोक सभा जितनी जल्दी अपने दो सदस्यों को अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के रूप में चुनती है , जब-जब दोनो पद रिक्त होगा तब-तब सदन दो अन्य सदस्यों को अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के लिए चुनेगा ।

अनुच्छेद 94 - अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को उसके पदों से हटाना या अवकाश तथा त्यागपत्र -
  1. यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं है तो वह अपना पद खाली कर देगा ।
  2. किसी भी समय अपने हस्ताक्षर के द्वारा , यदि वह अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधित कर अपना त्यागपत्र दे सकता है ।
  3. लोकसभा के सदस्यों की बहुमत से प्रस्ताव पारित करके उसे अपने पद से हटाया जा सकता है ।

नोट : खंड ( 3 ) तब तक प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता है जब तक प्रवस्तव पारित के करने के 14 दिन पूर्व सूचना न दिया गया हो ।

नोट : जब लोकसभा का विघटन होता है तो विघटन के बाद पहला लोकसभा के अधिवेशन के पहले तक अध्यक्ष अपना पद खाली नहीं कर सकता हैं।

अनुच्छेद 95 - अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या किसी अन्य व्यक्ति की शक्ति तथा अध्यक्ष के पद के कर्तव्य का पालन करना -
  1. जब अध्यक्ष का पद खाली हो तब उपाध्यक्ष , यदि उपाध्यक्ष का पद खाली हो तो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया गया व्यक्ति उस पद के कर्तव्य का पालन करेगा ।
  2. लोकसभा के बैठक में अध्यक्ष के अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष यदि उपाध्यक्ष भी अनुपस्थित हो तब लोकसभा के नियमों द्वारा चुना गया व्यक्ति , या ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित न हो तो लोकसभा द्वारा चुना गया व्यक्ति उस पद ( अध्यक्ष ) के लिए कार्य करेगा ।

अनुच्छेद 96 - जब अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को हटाने के लिए कोई प्रस्ताव विचाराधीन हो , अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को अध्यक्षता नहीं करना।
  1. लोकसभा के बैठक में अध्यक्ष के अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष यदि उपाध्यक्ष भी अनुपस्थित हो तब लोकसभा के नियमों द्वारा चुना गया व्यक्ति , या ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित न हो तो लोकसभा द्वारा चुना गया व्यक्ति उस पद ( अध्यक्ष ) के लिए कार्य करेगा ।
  2. जब लोकसभा के बैठक में अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो तब उपाध्यक्ष उपस्थित होने पर भी अध्यक्षता नहीं करेगा। तब उस समय अनुच्छेद 95 (2) का प्रधान ऐसे किसी बैठक की संबंध में लागू होंगे । 
  3. जब लोकसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो तब लोकसभा में बोलने  उसके कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा । अनुच्छेद 100 में किसी बात के होते हुए भी किसी मामले में केवल पहली बार वोट दे सकता है लेकिन , समानता के मामले में वोट नहीं डाल सकता है|


अनुच्छेद 97 - सभा पति तथा उपसभापति और अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते -

राज्यों के सभापति और उपसभापति एवं लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को ऐसे वेतन और भत्ते दिए जायेंगे  द्वारा निर्धारित किये जायेंगे | जब तक किसी ओर से ऐसा किया जाता है तब तक ऐसे वेतन भत्ते दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट किये जायेंगे | 


अनुच्छेद 98 - संसद का सचिवालय 

  1. संसद के प्रत्येक सदन में सचिवालय का एक अलग कर्मचारी | परन्तु इस खंड में कुछ भी दोनों  सदनों के लिए सामान्य पदों के निर्माण को रॉकमे के रूप में नहीं माना  जायेगा | 
  2. संसद कानून  द्वारा किसी भी सदन के सचिवीय कर्मचारी  नियुक्ति व्यक्तियों की सेवा की शर्तो को विनियमित कर सकेगी  | 
  3. जब तक संसद के द्वारा खंड 2 के प्रावधान नहीं किया जाता है तब तक राष्ट्रपति लोक सभा के अध्यक्ष तथा राज्यसभा  के अध्यक्ष , जैसा भी मामला हो परामर्श के बाद भर्ती को विनियमित करने वाला नियम बना सकेंगे | 


अनुच्छेद 99 - संसद के किसी भी सदन का परतेक सदस्य स्थान ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा निमित्य व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए निर्धारित पपत्र के अनुसार सपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा | 


अनुच्छेद 100 -  सदनों में मतदान रिक्तियां तथा गतिपूर्ण के बावजूद सदनों की कार्य करने की शक्तियां - 

अनुच्छेद 101 -स्थानों का रिक्त होना -

अनुच्छेदे 102 - सदस्यताओं के लिए निरर्हता -  


अनुच्छेद 103 - सदस्य की निरर्हताओं से संबधित प्रश्नो पर विनिश्चिय -  


अनुच्छेद 104 - अनुच्छेद 99 के अधीन सपथ लेरने तथा प्रतिज्ञान करने से पहले या अयोग्य या अयोग्य होने पर बैठने पर मतदान करने की दंड | 






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